पारित तीन कृषि कानून के विरोध में कुंडली बॉर्डर पर चल रहा विभिन्न किसान संगठनों का धरना आज तीसरे दिन में प्रवेश कर गया। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से यहां पहुंचने का किसानों का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा।
नयी दिल्ली: कृषि सुधार कानूनों का विरोध कर रहे पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से आए किसान रविवार को प्रदर्शन के तीसरे दिन भी दिल्ली की सीमा पर डटे रहे। उन्होंने केन्द्र सरकार के बुराड़ी मैदान में प्रदर्शन के सुझाव को नकार दिया है।
केंद्र सरकार ने हाल ही में बनाए गए कृषि सुधार कानूनों के विरोध में किसानों को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन करने की अनुमति नहीं दी है। केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने पत्र लिख कर किसान संगठनों से बातचीत करने का वादा करते हुए उनसे बुराड़ी में प्रदर्शन का अनुरोध किया था। उन्होंने कहा कि बुराड़ी में पर्याप्त व्यवस्थाएं हैं और कोविड-19 की स्थिति में, ठंड में खुले आकाश के नीचे रहना सुरक्षित नहीं।
केंद्र सरकार ने दिल्ली की सीमा पर एकत्र हुए किसानों को उत्तरी दिल्ली के बुराड़ी मैदान में विरोध प्रदर्शनों के लिए जगह दी है, लेकिन किसान संगठनों ने इसे ‘खुली जेल’ कहकर उनके प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया है।
भारतीय किसान यूनियन क्रांतिकारी के अध्यक्ष सुरजीत सिंह ने गुरुग्राम के पास कई कृषि संगठनों के प्रमुखों के साथ एक संवाददाता सम्मेलन में कहा, “बुराड़ी कोई विरोध स्थल नहीं है। हम जानते हैं कि केन्द्र सरकार इसे जेल में बदल देगी।”
उन्होंने कहा कि उनके पास चार महीनों का राशन समेत सारे इंतजाम हैं। आने वाले दिनों में दिल्ली के पांच महत्वपूर्ण आने-जाने वाले मार्गों को पूरी तरह से जाम किया जाएगा। पंजाब में किसान पिछले दो महीने से संघर्ष कर रहे हैं और पिछले चार दिनों से दिल्ली चलो अभियान के तहत किसान विभिन्न मार्गों से दिल्ली की तरफ बढ़ रहे हैं।
किसान नेताओं ने साफ तौर पर कहा कि किसी भी राजनीतिक दल के नेताओं को मंच पर अनुमति नहीं दी जाएगी। किसानों का आरोप है कि सरकार ने उनकी मांगों और सवालों पर कोई ध्यान नहीं दिया है। सरकार की कार्यप्रणाली ने अविश्वास और भरोसे की कमी पैदा की है। किसान संगठनों का कहना है अगर सरकार किसानों की मांगों को सम्बोधित करने पर गम्भीर है तो उसे शर्तें लगानी बंद कर देनी चाहिए।
हरियाणा में सोनीपत के कुंडली बॉर्डर पर पर बैठे किसान संगठनों ने रविवार को स्पष्ट कर दिया कि वह किसी वार्ता के लिए दिल्ली नहीं जाएंगे बल्कि केंद्र सरकार का प्रतिनिधि यहीं आकर उनसे बातचीत करे।
पारित तीन कृषि कानून के विरोध में कुंडली बॉर्डर पर चल रहा विभिन्न किसान संगठनों का धरना आज तीसरे दिन में प्रवेश कर गया। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से यहां पहुंचने का किसानों का सिलसिला बदस्तूर जारी रहा। रोजाना हजारों किसानों के धरना स्थल पर पहुंचने से इसका आकार विशाल होता जा रहा है। आलम यह है कि जहां तक नजर जाती है वहां किसान ही किसान नजर आते हैं। हाईवे के बीचों बीच किसानों का धरना चलने के कारण ट्रैफिक पूरी तरह ठप रहा।
विभिन्न किसान संगठनों ने आज एक बैठक करने के बाद सर्वसम्मति से फैसला लेने के बाद बयान जारी किया कि सरकार को तत्काल प्रभाव से तीनों कृषि कानून वापस लेने, किसानों पर बनाए गए झूठे मुकदमे वापस लेने, गिरफ्तार किए गए किसानों को तुरंत रिहा करने, तेल की कीमतों को सरकार अपने नियंत्रण में लेने समेत उनकी आठ मांगें माननी होंगी।
किसान नेताओं का कहना था कि वह अपनी मांगों पर बातचीत के लिए दिल्ली के बुराड़ी स्थित निरंकारी मैदान में नहीं जाएंगे बल्कि केंद्र सरकार के प्रतिनिधि को यहीं कुंडली धरने पर ही आकर सबके बीच बातचीत करनी होगी।
किसान संगठनों का कहना था कि सरकार को किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए। वह यहां जल्दी से जाने नहीं वाले। अपने साथ करीब चार महीने का राशन तथा आवश्यक सामग्री लेकर आए हैं। हाईवे पर धरने के चलते आम आदमी को होने वाली परेशानी के लिए सरकार सीधे तौर पर जिम्मेदार होगी।
दूसरी ओर रह रह कर किसानों ने एक स्वर में सरकार के खिलाफ जोरदार नारेबाजी की। धरना स्थल पर दिनभर सरकार विरोधी नारे गूंजते रहे। किसान संगठनों ने किसानों और फसलों की बुरी दुर्दशा के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया है।
किसान संगठनों के तेवर देखकर शासन-प्रशासन की सांसें फूली हुई हैं। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने रविवार को एक बयान जारी कर कहा कि किसान एकताबद्ध हैं और एक सुर में केन्द्र सरकार से तीन किसान विरोधी, जनविरोधी कानूनों, जो कारपोरेट के हित की सेवा करते हैं और जिन्हें बिना चर्चा किए पारित किया गया तथा बिजली विधेयक-2020 की वापसी की मांग कर रहे हैं।
किसान शांतिपूर्वक और संकल्पबद्ध रूप से दिल्ली पहुंचे हैं और अपनी मांग हासिल करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। पंजाब और हरियाणा से किसान भारी संख्या में सिंघु और टिकरी बार्डर पर पहुंच रहे हैं। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के किसानों की गोलबंदी भी सिंघु बार्डर पर हो रही है।
उन्होंने कहा कि देश के किसानों ने तय करके दिल्ली में भारी संख्या में विरोध जताया क्योंकि सरकार ने सितम्बर से जारी किये गये उनके ‘‘दिल्ली चलो’’ आह्नान के बाद हुए देशव्यापी विरोध कार्यक्रमों पर कोई ध्यान नहीं दिया। उन्होंने स्थानीय स्तर पर देश भर में बहुत सारे विरोध आयोजित किये, जबकि दिल्ली के आसपास के किसान राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की ओर आगे बढ़ रहे हैं।
किसानों ने दिल्ली पहुंचने की बहुत विस्तारित तैयारी की हुई है पर उन्हें एक दमनकारी अमानवीय व असम्मानजनक हमलों का सामना करना पड़ा है, जिसमें सरकार ने उनके रास्ते में बहुत सारी बाधाएं डालीं, पानी की बौछार की, आंसू गैस के गोले दागे, लाठीचार्ज किया और राजमार्ग खोद दिये। सरकार में पैदा हुए अविश्वास और भरोसे की कमी के लिए सरकार खुद भी जिम्मेदार है।
बयान में कहा गया है कि अब तीन काले कानून और बिजली विधेयक-2020 वापस लेने की मांग पर अपनी प्रतिक्रिया देने की जगह सरकार इस प्रयास में है कि बहस का मुद्दा यह बने कि किसान कहां रुकेंगे? पूरे शहर में पुलिस तैनात की गयी है जिससे विरोध कर रहे किसान और दिल्ली की जनता भी आतंक और संदेह के माहौल में आ गयी है। किसानों के रास्ते में लगाए गये बैरिकेट अब भी नहीं हटाए गये हैं।
उन्होंने कहा कि अगर सरकार किसानों की मांगों को सम्बोधित करने पर गम्भीर है तो उसे शर्तें लगाना बंद कर देना चाहिए। किसान अपनी मांगों पर बहुत स्पष्ट हैं। एआईकेएससीसी ने मांग की है कि सरकार को तुरंत ही इस मामले में राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों तथा गृह मंत्रालय की दृष्टि से सम्बोधित करना बंद कर देना चाहिए।
सरकार ने जोर जबरदस्ती से इन कानूनों को संसद में पारित कर दिया है और किसान उम्मीद करते हैं कि इसका समाधान राजनैतिक होगा जो सरकार के सर्वोच्च स्तर से आएगा। सरकार का गृह मंत्रालय को शामिल करने का प्रस्ताव किसानों के लिए एक धमकी के अलावा कुछ नहीं है और यह उसकी ईमानदारी के प्रति कोई विश्वास पैदा नहीं करता।
एआईकेएससीसी के वर्किंग ग्रुप ने सभी किसान संगठनों से अपील की है कि तुरंत दिल्ली की ओर किसानों की गोलबंदी तेज करें। उसने सभी कारपोरेट विरोधी, किसान पक्षधर ताकतों से अपील की है कि वह एक साथ मिलकर विरोध आयोजित करें। अखिल भारतीय गोलबंदी को तेज करने के साथ-साथ उसने एक दिसम्बर से राज्य स्तर पर विरोध आयोजित करने की अपील की है।
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रतिपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के उस बयान पर हैरानी जताई है जिसमें उन्होंने आंदोलन में हरियाणा के किसान शामिल होने से इंकार किया है। बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने कृषि संबंधी तीनों कानूनों पर असहमति व्यक्त करते हुए रविवार को कहा कि केंद्र सरकार को इन पर फिर से विचार करना चाहिए।
सुश्री मायावती ने यहां जारी एक संदेश में कहा कि इन कानूनों को लेकर पूरे देश के किसान आक्रोशित हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को स्थिति समझनी चाहिए और इनकी इन कानूनों की समीक्षा करनी चाहिए।
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि देश के किसान अपनी फसल की कीमत और स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट लागू करने की मांग कर रहे हैं और केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सरकार उनके साथ आतंकवादियों जैसा व्यवहार कर रही है।
श्री सिंह ने रविवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि आजादी के लिए मर मिटने वाले पंजाब के लोगों को आतंकवादी कह कर अपमानित किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल सरकार पूरी तरह किसानों के साथ है, हम दिल्ली में किसानों का स्वागत करते हैं।
एक तरफ किसान का बेटा देश की सीमा पर और किसान आंदोलन में शहीद हो रहा है, दूसरी तरफ देश के गृहमंत्री हैदराबाद की सैर कर रहे हैं और उनके पास किसानों से बात करने का समय नहीं है।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद ऐसा गैर जिम्मेदार, असंवेदनशील और किसानों की समस्याओं से बेपरवाह गृहमंत्री देश को पहली बार अमित शाह के रूप में देखने को मिल रहा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के इन कानूनों की तारीफ करने से साफ है कि केंद्र की मोदी सरकार और गृहमंत्री की मंशा किसानों की समस्याओं का समाधान करने की नहीं है।