संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करने जा रहे विपक्षी दलों ने 26 जनवरी को राजधानी दिल्ली हुए हिंसा की निष्पक्ष जांच की मांग की है क्योंकि विपक्षी दलों को शक है कि इसमें ‘केंद्र सरकार की भूमिका’ थी।
नई दिल्ली: कांग्रेस पार्टी समेत कुल 16 विपक्षी दल शुक्रवार को संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार करेंगे। एक आधिकारिक बयान में आज कहा गया है कि संबोधन का बहिष्कार करने का निर्णय नए पास किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने और दो महीने से अधिक समय से दिल्ली की सीमाओं पर विरोध कर रहे किसानों के प्रति एकजुटता दिखाने के लिए है।
आधिकारिक विज्ञप्ति में कहा गया है कि जिन दलों ने इस संबोधन का बहिष्कार करने के लिए सहमति व्यक्त की है उमने से कांग्रेस पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP), जम्मू और कश्मीर नैशनल कान्फ्रन्स (JKNC), द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK), अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (AITC), शिव सेना, समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय जनता दल (RJD), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (CPI-M), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML), रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी (RSP), जम्मू और कश्मीर पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP), मारुमरलची द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (MDMK), केरल कांग्रेस और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) शामिल हैं।
इन पार्टियों ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 26 जनवरी को हुई झड़पों की निष्पक्ष जांच की मांग की है क्योंकि उन्हें इस परिक्रमा में ‘केंद्र सरकार की भूमिका’ पर संदेह है।
दिल्ली में गणतंत्र दिवस के दिन विरोध प्रदर्शन करने वाले किसानों और दिल्ली पुलिस के बीच झड़पें ट्रैक्टर परेड को लेकर हिन थीं, जिसके परिणामस्वरूप नागरिकों और पुलिसकर्मियों को चोटें भी आईं और एक की जान चली गई। विपक्षी दलों ने कहा, “हम दिल्ली पुलिस कर्मियों को कठिन परिस्थितियों को संभालने के दौरान लगी चोटों पर भी दुख व्यक्त करते हैं।”
पार्टियों ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर असंवेदनशील बने हुए हैं। बयान में कहा गया है कि “प्रधानमंत्री और भाजपा सरकार अपनी प्रतिक्रिया में अहंकारी, अड़ियल और अलोकतांत्रिक बने हुए हैं।”
पार्टियों ने केंद्र को याद दिलाया कि पिछले 64 दिनों से ठंड के मौसम में सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन करते हुए 155 से अधिक किसानों ने अपनी जान गंवाई है। पार्टियों ने आश्वस्त किया कि नए अधिनियमित कृषि कानून राज्यों के अधिकारों पर एक ‘हमला’ है और संविधान फेडरल स्पिरिट का ‘उल्लंघन’ है।
मानसून सत्र के दौरान संसद द्वारा पारित तीन कानूनों को देश के किसान समर्थक किसान विरोधी बताते हैं क्योंकि इससे निजी कंपनियों का कृषि व्यापार में पूरा अमल दाखल हो जाएगा।