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Saturday, December 14, 2024

राष्ट्रीय शिक्षा नीति, मातृभाषा में शिक्षण को बढ़ावा देती है: मोदी

इंडियाराष्ट्रीय शिक्षा नीति, मातृभाषा में शिक्षण को बढ़ावा देती है: मोदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, मातृभाषा में शिक्षण को बढ़ावा देती है।

श्री मोदी ने अखिल भारतीय प्राथमिक शिक्षक संघ के 29वें द्विवार्षिक अधिवेशन ‘अखिल भारतीय शिक्षा संघ अधिवेशन’ में यहां कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में जो एक बड़ा प्रावधान किया गया है।

वह हमारे गांव-देहात और छोटे शहरों के शिक्षकों की बहुत मदद करने वाला है। यह प्रावधान है कि मातृभाषा में पढ़ाई का। हमारे देश में अंग्रेजों ने ढाई सौ साल राज किया, लेकिन फिर भी अंग्रेजी भाषा एक वर्ग तक ही सीमित रही थी।

उन्होंने कहा, “दुर्भाग्य से, आजादी के बाद ऐसी व्यवस्था बनी कि, अंग्रेजी भाषा में ही शिक्षण को प्राथमिकता मिलने लगी। माता-पिता भी बच्चों को अंग्रेजी भाषा में पढ़ाने के लिए प्रेरित होने लगे।

इसका नुकसान अध्यापक यूनियन ने कभी इस पर सोचा है कि नहीं सोचा है, मुझे मालूम नहीं है। आज मैं आपको बता रहा हूं, जिस समय आप सोचेंगे इस विषय पर इस सरकार की जितनी तारीफ करेंगे उतनी कम होगी। ”

उन्होंने कहा, “ क्या हुआ जब ये अंग्रेजी-अंग्रेजी चलने लगा तो गांव-देहात और गरीब परिवार के हमारे उन लाखों शिक्षकों को जो मातृभाषा में पढ़कर निकल रहे थे। वे कितने ही अच्छे शिक्षक हों, लेकिन उनको अंग्रेजी सीखने का अवसर नहीं मिला था।

अब उनके लिए नौकरी का खतरा मंडराने लग गया, क्योंकि अंग्रेजी का माहौल चल गया। आपकी नौकरी और आप जैसे साथियों की भविष्य में भी नौकरी निश्चित करने के लिए हमनें मातृभाषा में शिक्षा पर बल दिया है।

जो मेरे शिक्षक के जीवन को बचाने वाला है। दशकों से हमारे देश में यही चलता आ रहा था, लेकिन अब राष्ट्रीय शिक्षा नीति, मातृभाषा में शिक्षण को बढ़ावा देती है। इसका बहुत बड़ा लाभ आपको मिलेगा।

इसका बहुत बड़ा लाभ हमारे गांवों से आए हुए, ग़रीब परिवार से आए हुए युवाओं को मिलेगा, शिक्षकों को मिलेगा, नौकरी के लिए अवसर तैयार हो जाएंगे।”

प्रधानमंत्री ने कहा कि शिक्षकों से जुड़ी चुनौतियों के बीच, आज हमें समाज में ऐसा माहौल बनाने की भी जरूरत है, जिसमें लोग शिक्षक बनने के लिए स्वेच्छा से आगे आएं। अभी जो स्थितियां हैं, उसमें हम देखते हैं कि लोग डॉक्टर बनने की बात करते हैं।

इंजीनियर बनने की बात करते हैं। एमबीए करने की बात करते हैं। टेक्नोलॉजी को जानने की बात करते हैं। ये सारी बाते करते हैं लेकिन बहुत कम देखने को मिलता है कोई आकर कहे कि मैं शिक्षक बनना चाहता हूं।

मैं बच्चों को पढ़ाना चाहता हूं। ये स्थिति किसी भी समाज के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती होती है। ये सवाल उठना बहुत आवश्यक है कि हम नौकरी के लिए बच्चों को पढ़ा रहे हैं, तनख्वाह भी मिल रही है, लेकिन क्या हम मन से भी शिक्षक हैं, क्या हम जीवन भर शिक्षक हैं। क्या सोते, जागते, उठते बैठते हमारे मन में ये भावना है कि मुझे देश के आने वाले भविष्य को गढ़ना है।

बच्चों को हर रोज कुछ नया सिखाना है। मैं मानता हूं समाज को बनाने में शिक्षकों की बहुत बड़ी भूमिका होती
है, लेकिन कई बार कुछ परिस्थितियाँ देखकर मुझे तकलीफ भी होती है। ”

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