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Wednesday, July 30, 2025

भारत की अर्थव्यवस्था पर ईरान-इस्राइल संघर्ष का प्रभाव: कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और चालू खाता घाटा बढ़ने की संभावना

अर्थव्यवस्थाभारत की अर्थव्यवस्था पर ईरान-इस्राइल संघर्ष का प्रभाव: कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि और चालू खाता घाटा बढ़ने की संभावना

कच्चे तेल की कीमतों में उछाल: भारत की जीडीपी पर असर

पश्चिम एशिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों ने भारत की आर्थिक स्थिरता को खतरे में डाल दिया है। हालिया रिपोर्ट के अनुसार, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी आईसीआरए ने चेतावनी दी है कि अगर ईरान और इस्राइल के बीच चल रहे संघर्ष से कच्चे तेल की कीमतों में प्रति बैरल 10 डॉलर की बढ़ोतरी होती है, तो इससे भारत के चालू खाता घाटे (सीएडी) में भी इजाफा हो सकता है। इस संदर्भ में, भारत के शुद्ध तेल आयात में लगभग 13 से 14 डॉलर की वृद्धि होने की संभावना व्यक्त की गई है।

ईरान-इस्राइल संघर्ष का प्रभाव न केवल भारत के चालू खाता घाटे पर पड़ेगा, बल्कि यह GDP पर भी अपना असर डाल सकता है। अगर वित्त वर्ष 2026 में कच्चे तेल की औसत कीमत 80 से 90 डॉलर प्रति बैरल तक पहुँचती है, तो सीएडी जीडीपी के 1.5 से 1.6% तक बढ़ सकती है। इसका सीधा अर्थ है कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर बढ़ता दबाव, जो आने वाले समय में गंभीरता से महसूस किया जा सकता है।

कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण

ईरान और इस्राइल के बीच संघर्ष की शुरुआत 13 जून 2025 को हुई। यह संघर्ष कच्चे तेल की कीमतों को 64 से 65 डॉलर प्रति बैरल से बढ़ाकर 74 से 75 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंचा चुका है। अमेरिका की चेतावनी के बाद ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की घोषणा की है, जिससे वैश्विक तेल आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती है। यह जलडमरूमध्य दुनिया के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में से एक है, जो लगभग 20 मिलियन बैरल कच्चा तेल और वैश्विक तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) के शिपमेंट का एक तिहाई हिस्सा रोजाना संभालता है।

यह जलडमरूमध्य 30 मील चौड़ा है और ईरान और ओमान के बीच स्थित है। ईरान द्वारा जलडमरूमध्य पर नियंत्रण रखने का प्रयास वैश्विक बाजार में ऊर्जा के मूल्य को बढ़ा सकता है, जिससे भारत जैसे देशों को दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है।

भारत की ऊर्जा आयात नीति पर असर

भारत इराक, सऊदी अरब, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात से कच्चे तेल का आयात करता है। यहाँ दिलचस्प बात यह है कि भारत का लगभग 45 से 50% कच्चा तेल इसी होर्मुज जलडमरूमध्य के जरिए आता है। इसके अलावा, प्राकृतिक गैस के मामले में भारत का 54% प्राकृतिक गैस भी इसी मार्ग से होकर आती है। इसलिए, इस जलडमरूमध्य पर कोई भी व्यवधान ऊर्जा की कीमतों को बढ़ा सकता है, जो अंततः उपभोक्ताओं पर भारी पड़ता है।

महंगाई के संकेत

आईसीआरए ने यह भी कहा है कि तेल कीमतों में वृद्धि के प्रभाव से थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में 80 से 100 आधार अंक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में 20 से 30 आधार अंक तक की वृद्धि हो सकती है। यह महंगाई का एक संकेत है, जो सरकार और उपभोक्ताओं दोनों के लिए चिंता का विषय हो सकता है।

इसके अतिरिक्त, बढ़ती तेल कीमतों के कारण खाद्य और अन्य जरूरी वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ सकती हैं, जिससे आम आदमी की जेब पर भारी असर पड़ेगा।

आगे की संभावनाएँ

ईरान-इस्राइल संघर्ष और होर्मुज जलडमरूमध्य के बंद होने से भारत की अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यदि भौगोलिक स्थिति में बदलाव होता है, तो भारत को अपनी ऊर्जा आयात नीति में सुधार करने की आवश्यकता हो सकती है। यह आवश्यक है कि भारत अन्य विकल्पों की तलाश करे, ताकि उसे वैश्विक बाजार में कीमतों के उतार-चढ़ाव से बचा जा सके।

इस संदर्भ में, शोधकर्ताओं का कहना है कि भारत को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों की खोज करनी चाहिए और स्थायी ऊर्जा विकल्पों पर अधिक ध्यान देना चाहिए। यदि भारत अपने ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करता है, तो वह वैश्विक ऊर्जा संकट का सामना करने में सक्षम हो सकता है।

इस प्रकार, ईरान-इस्राइल संघर्ष और होर्मुज जलडमरूमध्य पर लागू संकट ने भारत की आर्थिक स्थिति को एक नई चुनौती प्रदान की है। इससे न केवल चालू खाता घाटा बढ़ने की संभावना है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप खाद्य और ऊर्जा कीमतों में भी वृद्धि हो सकती है।

 

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